Saturday, July 2, 2022

नदी का सुकून और बदला


नदी के पास आकार ऐसा लगता है जैसे खुद के ही पास आ गया,  

अब खुद को सुन पा रहा,  कोई नहीं है बस मै हूं,  सबमें मै हूँ, 

 मै ही बह रहा और मै ही रुका था,  

मै ही बादल बनकर  बरसूंगा,

और मै ही साग़र से मिलूंगा.

नदी के पास कितना सुकून है,  वो बिना किसी शर्त के मुझे खुद में समा लेना चाहती है, 

वो इंसानो से अलग है वो दस सवाल पूछते हैं,  

नदी कुछ नही मांगती,  वो बस देना चाहती है,  

सदियों से उसने बस देना सीखा है ,

और इंसानो ने सिर्फ लेना,  उनका मन कभी नहीं भरता, 

नदी के पास सब समान है,  इंसान के तमाम भेद हैं, 

इंसान उस सुकून को भी अपने अनंत गटर नुमा पेट में डाल कर हज़म कर लेना चाहते हैं, 

जैसा वो पूरी धरती के साथ कर रहा, 

तो फिर नदी बदला क्यों ना ले?

क्यों ना बेमौसम बारिश से वो सबको डुबो दे, और फिर सुकून से  बहती रहे.

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