Sunday, November 26, 2023

Killers of the planet Earth.

 



 

Who is a hero, who is a villain, who is a god, who is Satan? In today's world, the boundaries are blurred; we are both the exploiter & the exploited, the Narcissists & the codependent; we have both neurosis & character disorder; we suffer from depression and are also high on dopamine, oscillating between two extremes, and our center is self-benefits, that's it. 

 

Today, man doesn't have feelings; we don't love or hate; we are all consumerists & capitalists eating the Earth; we are not loyal to anyone; we have no morality; it's all conditional; we are not fixed to ethics or religion, our center is to fill the unsatiable belly tank & expand. 

 

We are going nowhere yet busy; we are famous yet sad; we are successful & neurotic; we are spiritual & lustful; we are religious & discriminatory; we are scholars & also those bringing fragmentation; we talk peace by standing on the ground of the deadliest war, we are the degree holders with blood on hand & gun on the pocket. 

 

We clap on an eloquent speech on the mass killing of fellow humans based on some philosophy, and our public executioners are awarded public speaking prizes. 

 

While pretending to be a best friend, we simultaneously stab the back; while projecting to be the greatest well-wisher, we push our closed ones to unconscious patterns; with the promise of lifelong friendship, we say the biggest lies, honesty & cheating, companionship & backstabbing goes hand in hand.

 

We neither trust nor can be trusted; we are all fragmented, deluded, conditioned, violent, romanticists seeking love, peace, security, belongingness, inclusion, human rights, money, power, success, wealth, fame, & luxury; we all are on the same boat yet categorize the rest as others.

 

We are pathetic pieces of meat, just a bit of advanced species going to be extinct soon. We can die any day, but we live like the kings of the planet.

 

We forget & forgive, but together, we are killers of this planet, polluters, destructors, and share holders in the mass annihilation. Together, we are all dancing on our deathbed & we call it life. 

 

We are all the Killers of the planet Earth.

 


Sunday, November 19, 2023

पहली सुबह सी।

 


मैं खो जाना चाहता हूं, सवाल-जवाब की दुनिया से परे कहीं पहुच जाना चाहता हूँ, 

जहाँ कोई जान-पहचान का ना हो, 

एक नयी दुनिया हो सबकुछ नया करने का मौका और जोश, 

एक पिंजरा है जो दिखता नही है, 

वहाँ कुछ उम्मीदें हैं और उससे जुड़ी आशा -निराशा,

इस खेल में कोई रस नहीं ये मेरे प्राण चुसता है,

मुझे अधमरा कर छोड़ता है, 

मैं ये याद रखना चाहता हूँ कि मैं जिंदा हूँ,

उस सुनहरे हरे सुबह की तलाश में जहां मन में पुरानी कोई याद ना हो, 

जो पूरी तरह से नयी हो एक नयी जिंदगी- पहली सुबह सी।

Saturday, October 28, 2023

घुटन



कौन अपना है कोई नहीं,

इंसान को इंसान से प्यार नहीं होता, प्यार होता है उन्हें सिर्फ अपने स्वार्थ से, 

जिसे तुम अपना समझते हो वही तुम्हें अपने स्वार्थ के लिए घर से निकाल सकते हैं, तुम्हारा जीना मुश्किल कर सकते हैं, घुटन पैदा करते हैं, 

तुम्हें कोई नहीं समझ सकता, किसी को तुम्हें समझने में कोई दिलचस्पी नहीं, ना तुम सरकारी नौकरी हो ना जमीन का टुकड़ा, 

दुनिया हिंसा, नफरत और स्वार्थ से भरी है,  

जहाँ मन को शुद्ध करने का काम चल रहा हो वहाँ भी घटिया लोग मिल जाते हैं, जो छाती चौड़ी करके अपनी तुच्छ मान्यता का प्रदर्शन करते मिल जाएंगे, 

आत्मविश्वास के साथ कामना से ग्रसित आँखों से लोगों में भेद करते दिख जायेंगे, और उन्हें अपने भौंडेपन का जरा भी एहसास होता ना दिखेगा, 

इंसान को लड कर अपना महत्व हासिल करना होता है, नहीं तो सबसे उत्कृष्ठ जगहों पर भी खुद को सबसे उत्कृष्ठ समझने वाले तुम्हें ये साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे की तुम उनके और दुनिया के लिए कितने नकारा हो,

मुक्त पुरुष तो छोड दो मुझे तो आज तक कोई जीवित व्यक्ति भी ना मिला जिसे इंसान बोल सकूँ,  ना मैं खुद हूँ,  जानवर पैदा हुआ था इंसान बनने की कोशिश में लगा हूँ, 

पर उनका क्या जो खुद को शुद्ध-बुद्ध-मुक्त-पुरुष होने का दावा करते हैं,  मुझे तो गली के कुत्ते उनसे ज्यादा इंसान लगे,

हर इंसान बस बेसुध होकर बेहोशी में अपने स्वार्थ का पीछा कर रहा है, तुम्हारे होने या ना होने से उसे कोई फर्क़ नहीं पडता, 

हर इंसान अगर ईमानदारी से रोज सुबह उठकर अगर खुद से दो सवाल पूछे कि क्या मैं एक घटिया इंसान हूँ? और उससे भी ज्यादा जरूरी, क्या मुझे इंसान कहा जा सकता है?

 चाहे वो खुद को कितना भी मुक्ति का साधक मानता हो, तो शायद दुनिया थोड़ी सी बेहतर जगह बन जाए, 

मैंने खुद से ये ईमानदारी से पूछा और जवाब आया नहीं, अभी बहुत मेहनत करना बाकी है ।

Saturday, September 9, 2023

मेरे जैसे लोग कहाँ हैं ?


 मेरे जैसे लोग कहाँ हैं ?

दुनिया विरान क्यों दिखती है, लोग अनजान क्यों लगते हैं? 

जो खास लगता है वो किसी और के ज्यादा पास क्यों लगता है,  है भी तो तकलीफ़ क्या है?

हर वक़्त  मन में जो आच्छादित रहता है वो अनंत से इतना दूर क्यों लगता है? 

संसारियों का संसार इतना सुना क्यों लगता है? 

कवि होना क्या है? ईमानदारी का बयान या ? 

संसार एक खंडहर लगता है, अनंत से काफी दूर हूँ, कोई खास पास नहीं, खुद से भी दुःखी हूँ, बीच मेँ कहीं एक अनवरत तड़प।  

वो नहीं बन सकता अब जो मुर्गे कि बोटी चबा के क्षणिक सूख पा लेता था, ना बुद्ध हूँ, 

ना मैं इंसान हूँ, ना राक्छस, यही विडंबना है। 

जिससे मुझे प्यार है उसे शायद प्यार से प्यार नहीं, उसे शायद मेरे, मेरे जैसा होने से भी ऐतराज है और मुझे इन सबसे ऐतराज है।  

मुझे कहीं फिट नहीं किया जा सकता, मैं खुद में एक खेमा हूँ।  

इसलिए हमेशा लगता है मेरे जैसे लोग कहाँ हैं, आजतक तो मिले नहीं, आगे शायद... शायद कोई ना हो मेरे जैसा, कोई है?

हर किसी को अपने जैसा ही चाहिए, ये तो अहम है।  

पर मुझे तो मेरे जैसा होने के कारण ठुकराया गया, उन्होंने अपने जैसों को इक्कठा किया। 

इसलिए मुझे लगा मेरे जैसे कुछ हों तो मैं भी एक खेमा बना लूँ,

और ऊँची दीवार बना कर अपने खेमे की घेराबंदी कर लूँ ,

पर मुझे मेरे जैसा कोई मिलता ही नही। 

                                  (Written in June 2023)

Monday, July 17, 2023

तुम्हारे सवाल तुम्हारे औकात का आईना हैं


 तुम्हारे सवाल तुम्हारे औकात का आईना हैं,

संसारी सवाल का जो जवाब मैं देता हूँ वो या तो झूठ होता है या मनोरम कहानियाँ,

ढ़ांचे के अंदर बैठ के पूछे गए सवाल ढांचागत ज़वाब ही चाहता है,

वहाँ सवाल भी बातें हैं बस—एक फ़र्ज़ निभाया गया है, जवाब ना भी दो तो जवाब मान कर ही पूछा गया है,

एक घटिया माहौल वो है जहां भीतर की बेचैनी को बाहर निकालने की एक उन्नत कलात्मकता निवृत्ति का सर्वथा अभाव हो,

जहाँ माहौल इतना सघन पदार्थवादी हो कि कला अंदर ही दम तोड़ दे और तुम्हें पता भी ना चले,

 कुछ हुआ था क्या?

 ढ़कार भी ना उठे।

(From Mobile Notes written on May 2023)

Sunday, May 21, 2023

तुम्हें क्या खिंचता है?

 



तुम्हें जो खिंचता है वो तुम्हारे छुद्रता की कौतुहल है—उसे खुद को खुश करने के लिए ज्यादा बड़ा नाम ना दो; 

पूरे होते तो कोई खिंचाव होता क्या?

साँसें जो हमेशा बेसब्र रहती हैं वो कुछ समय के लिए ही शांत हो पातीं हैं।

क्या मृत्य ही अंतिम आराम है?

आराम तो वहाँ भी नही। 

कोई मुक्ति नही है। 

एक सतत यात्रा है। 

कुछ पल की शांति है। 

कुछ पल की मौज है। 

क्या कुछ अनंत ठहराव है? 

मन के आगे कोई दुनिया भी है? 

प्यार है?

(मेरे नोट्स से, कभी मई 2023 में लिखे गए)

Thursday, March 30, 2023

क्या है मेरी कहानी ?


मैं मरा हुआ हूँ या मेरी कहानी, 

क्या है मेरी कहानी ?

 वो जो मैं हूँ या कुछ और जो मैंने भी नही जाना अभी तक, 

मेरी कहानी वो बताता है, जो मैं हूँ ही नही, 

और जो मैं हूँ उससे मैं अब तक मिला नही, 

पर्दे पर जो है वो सच है या नाटक, 

किसने लिखा है मुझे, क्या हूँ मैं ?

 शायद एक गहरे अहंकार के बचे रहने की साजिश, 

या एक नायाब नन्हें परिंदे की उड़ने की नाकाम कोशिशें, 

या गहरे कोहरे के पीछे छुपा हुआ एक नन्हा सितारा, 

या ठंडी काली रात में जान बचाता एक बेज़ान लावारिस सड़क का पिल्ला, 

जो भी हूँ,  खुश नही हूँ,  अधूरा हूं,  अकेला हूँ,  बेचैन हूँ, 

अति से कम और कम से ज्यादा,  

अतीत में पनपा आज का एक धोखा हूँ,  

मैं सुबह भुलाए गए पिछ्ली शानदार रात सा छिछला हूँ.

Tuesday, March 7, 2023

नया सफर या फिर एक दोहराव



 नए सफर में कितना कुछ पीछे छोड सकता है इंसान,  

शायद यहि है असली सफलता का पैमाना, 

कुछ छोड पाते हैं कुछ वो सफर कभी शूरू ही नहि कर पाते, 

सबसे अभागे वो लोग हैं शायद,  जो उस सफर के बारे कभी सोचते भी नहि,  उस तलाब के रूके हुए गंदे ठहरे पानी की तरह,

तुम सच मे निकले या अभी भी पीछे ही हो कहीं,  बस एक भ्रम सा है शायद कि निकले,

क्या कभी कुछ पीछे छोड़ा, क्या कभी कुछ पीछे छोडना भी चाहा, नहि चाहा तो क्यों नहि चाहा,  क्यों चिपके पडे हो, क्यों नये से दूर हो, क्या है ये साजिश, 

क्या हम कहीं पहुंच सकते हैं?

क्या कुछ कभी नया भी होता है?

क्या बदलता है हमे? हमारे निर्णय? या कुछ और,  वो कुछ और क्या है?

हम ज्यादा जिंदा हैं या ज्यादा मरे हुए? 

आज इस सफर में थोड़ा ज्यादा जिंदा हो गया, सब कुछ नया करने की आस, फिर से जिंदा हो जाने की उम्मीद, और एक नयी शुरूवात की आशा. 

जाने क्या होगा, क्या सबकुछ मेरे बस मे है?

कौन है मेरे अन्दर जो मुझे रोकता है, सीमित करता है ?

Monday, February 27, 2023

Lost words



 No more words required; the mist is passing slowly, but one leg still struck seems I am not here, It seems.

 What's art, is there ever been an artist defining art? Have you ever reached close to define it?

More importantly, I am sure I don't live in dream anymore, but am I less body centric, do I unbelieve this?

Am I more into this world, seems so, am I not escaping, seems so, am I happier? seems so, better, probably, have I reached closer to knowing me? 

Probably yes, but not peaceful, but yes less restless, less agitated, less out of the world.