Saturday, July 23, 2022

मेरी कमजोरियों का आखिरी विद्रोह


उसके शब्दों से मेरे कानों से खून गिरने लगे वो  खून शायद मेरी कमजोरियों का आखिरी विद्रोह था. मेरे पुराने प्रिय लगने वाले बंधन मुझे उससे दूर ले जाना चाहते थे,  प्रकृति की गोद में जाकर पहले की ही तरह बेहोशी का चुनाव करना चाहते थे.  

पर भीतर ही कहीं एक सत्य का प्रकाश भी था, जो उसके पैरों पर गिर जाना चाहता था,  जो उस अनमोल रत्न का माथा चूम लेना चाहता था.
जो उसका हाथ थाम कर समुद्र की लहरों के थपेड़ों सी उसकी बातों को प्रेम जानकर झेल जाना चाहता था.  जो अपनी कमजोरियों के विद्रोह का हमेशा के लिए अंत कर देना चाहता था. 

 पर क्या वो ऐसा कर पाया ?

क्या उसने 'सत्य' को खुद मे जो खुदा जैसा कुछ  नही था उसे नष्ट करने दिया ?

कितनी बार और सत्य को मेरे अन्दर के दानव को नष्ट करने आना होगा?  

कब सीखूंगा मैं?

 वो समय कब आयेगा, जब खुद के अन्दर खुद जैसा कुछ ना बचे, जब मैं औऱ वो एक हो जाये ?

 तबतक क्या सत्य धैर्य रख पाएगा,  क्या वो बार बार  आयेगा मुझे ऊंचा उठाने,  मुझे मुझसे बचाने,  या अब वो थक चुका है,  मेरा वक़्त पूरा हो चुका है,  उसे और जरूरी काम है,  उसकी जरूरत और कहीं है ?

मेरी सबसे बड़ी हार होगी अगर मेरे कारण उसके अंदर का सत्य जरा भी धूमिल हो जाए.  उस वक़्त की जरा भी  भनक होने  पे मैं  सागर में समा जाना चाहूँगा. 

अगर मेरे आत्मबलिदान से वो  सत्य के एक कदम भी करीब पहुँचता है तो  मुझे वो कबूल  होगा. 
 
शरीर का मोह किसे नही  होता पर वो शरीर जो खुद से  ज्यादा सत्य के करीब खड़े  एक साधक के लिए बाधा बने उसे मिट  ही जाना चाहिए.

Saturday, July 2, 2022

नदी का सुकून और बदला


नदी के पास आकार ऐसा लगता है जैसे खुद के ही पास आ गया,  

अब खुद को सुन पा रहा,  कोई नहीं है बस मै हूं,  सबमें मै हूँ, 

 मै ही बह रहा और मै ही रुका था,  

मै ही बादल बनकर  बरसूंगा,

और मै ही साग़र से मिलूंगा.

नदी के पास कितना सुकून है,  वो बिना किसी शर्त के मुझे खुद में समा लेना चाहती है, 

वो इंसानो से अलग है वो दस सवाल पूछते हैं,  

नदी कुछ नही मांगती,  वो बस देना चाहती है,  

सदियों से उसने बस देना सीखा है ,

और इंसानो ने सिर्फ लेना,  उनका मन कभी नहीं भरता, 

नदी के पास सब समान है,  इंसान के तमाम भेद हैं, 

इंसान उस सुकून को भी अपने अनंत गटर नुमा पेट में डाल कर हज़म कर लेना चाहते हैं, 

जैसा वो पूरी धरती के साथ कर रहा, 

तो फिर नदी बदला क्यों ना ले?

क्यों ना बेमौसम बारिश से वो सबको डुबो दे, और फिर सुकून से  बहती रहे.