Tuesday, May 31, 2022

प्रैक्टिकल लोग



प्रैक्टिकल  लोग कभी असफल नहीं होते, 
क्योंकि वो गलती से भी रास्ते नहीं भूलते इसलिए वो कभी नए रास्ते नहीं खोज पाते.
वो कभी गलती से किसी गलत ट्रेन में नहीं बैठते इसलिए किसी अनजान जगह बिना वजह जाने का मज़ा भी नहीं ले पाते.
वे अनियोजित यात्राओं पर कभी नही जाते, क्योंकि उनके जीवन में सबकुछ तय होना चाहिए,  कुछ भी नए होने की उम्मीद को वो पहले ही मार चुके होते हैं.
वो बहुत आत्मविश्वास से भरे दिखते हैं क्योंकि उन्होंने पहला कदम ही अंत की साफ तस्वीर देखने के बाद ली थी.
जिन रास्तो पर कोई चला न हो और जिनपे चलने से पहले ही साफ़ अंत उन्हें नहीं दिखता वो उनपे चलने वालों को पागल समझ हतोत्साहित करते हैं.
वो भीड़ के साथ रहते हैं क्योंकि वो अंदर से बहुत डरे होते हैं,
उनका सबसे बड़ा डर असफल होने का है,  इसलिए वो भीड़ से अलग कुछ भी करने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाते, 
उनकी जिंदगी की कहानी निश्चित होती है उसमें फ़ेर बदल की कोई संभावना नहीं .
और इनको लगता है यही जिंदगी है जहां सब पूर्व-निर्धारित होना चाहिए, 
 यही होता है प्रैक्टिकल होना जो सब कर रहे बिना सवाल पूछे बस वही करते रहो, 
नहीं किए तो असफल हो जाओगे.



Wednesday, May 25, 2022

फितरत


 पेड़ों पर ठहरे हुए बादल, बूँदों का शोर, और कुछ अनछुए सवाल,

सवालों पर उलझते, फिसलते कहीं दूर चला जाता हूँ, 

और फिर वापस आने पर पता चला कि सारी उलझ बेकार थी, 

क्योंकि कहीं पहुचना ही न था,  बस थोड़ा भागना था,

भागना क्यों था, क्योंकि फितरत ही ऐसी हो गई है, 

अब तो रुक जाना था,  क्य़ा वो नहीं मिल गया जो सब तलाश का ही अंत कर दे,

नहीं मिला तभी तो भाग रहा हूं, 

पर कब तक कभी तो रुकना होगा .

Sunday, May 8, 2022

असमंजस


 असमंजस में हूँ, क्यों हूं, 

रास्ता बना हुआ नहीं है, बनाना पड़ेगा,  मुश्किल है, 

बने बनाए रास्तो पर चलना आसान था,  

अब कुछ आसान नहीं होगा, 

आसमान मंजिल है और पैर जमीन पर, 

ख्वाब और अतीत भ्रम है,  तो सच क्या है,  

मेरा क्या है,  या मेरा कुछ नही, 

अतीत की परछाई कमजोरी और डर साथ लाती है, 

डरते डरते ही सही,  चलना तो होगा,  

ना कहीं पहुचना है,  ना जितना है, 

पर सारे बंधनों से मुक्त होना है,  संपूर्ण आजादी चाहिए, 

जहा डर और कमजोरी का नामोनिशान ना हो .

Sunday, May 1, 2022

मैं, हम और प्रकृति

 

तारे गिनता हूँ,

 चांद को देखता हूं,  

 नदी में नहाता हूँ, 

 पेड़ों को गौर से देखता हूँ, 

  जंगल में जोर की साँस लेता हूँ, 

 कमल से भरे तालाब में  शिसम के सूखे पत्ते को गिरते देखता हूँ, 

 एक छोटी बैंगनी रंग और काली चोंच वाली चिडिया को सहजन के फ़ूलों का रस पीते देखा, 

 उसी कमल के तालाब पे पांचवे दिन एक छोटी काली मछली को छलांग लगाते देखा, 

 दिल खुश हो गया, 

 खुद से और ज्यादा प्यार हो गया ,

 पता लगा कि इंसानो के विपरित प्रकृति ढोंग और भेद भाव  नही  करती .