और उस एक छण में जैसे सबकुछ शांत हो गया,
और जैसे मैंने पहली बार सुना हो,
रात का सन्नाटा, झींगुरो का शोर,
दूर से पार होती एक ट्रेन की आवाज,
पर मेरे मन में कोई शोर ना था,
जैसे विचारों के कौतुहल के बाहर पहली बार देखा हो,
एक नयी दुनिया,
और मैंने महसूस किया अपने साँस को,
भीतर से खुद के मौजूद होने के एहसास को,
उस छण में किसी की जरूरत ना थी,
फिर भी सब थे मेरे अन्दर, मेरे साथ, मुझमे ही कहीं,
अब बस एक मुस्कान थी और
मौन में विश्राम.