Monday, April 25, 2022

मौन में विश्राम

 


और उस एक छण में जैसे सबकुछ शांत हो गया, 

और जैसे मैंने पहली बार सुना हो, 

 रात का सन्नाटा,  झींगुरो का शोर, 

दूर से पार होती एक ट्रेन की आवाज, 

पर मेरे मन में कोई शोर ना था, 

जैसे विचारों के कौतुहल के बाहर पहली बार देखा हो, 

एक नयी दुनिया, 

और मैंने महसूस किया अपने साँस को, 

भीतर से खुद के मौजूद होने के एहसास को, 

उस छण में किसी की जरूरत ना थी, 

फिर भी सब थे मेरे अन्दर,  मेरे साथ,  मुझमे ही कहीं, 

अब बस एक मुस्कान थी और
मौन में विश्राम.

Friday, April 22, 2022

मैं कौन हूं ?

 


कहीं पहुंचना चाहता हूँ, पर कहां?

कहीं और होना चाहता हूँ,  पर कहां?

आजादी चाहिए,

पर किस्से?

हर किसी से,

मुक्ति चाहिए ,

पर किस्से ? 

बंधनों से, अछे बुरे संस्कारों से, 

पाने की इच्छा से, और ना पाने के दुख से, 

निराशा,  आशा,  उमंग,  और पश्चाताप से, 

मिलेगी क्या? कैसे मिलेगी?

क्या किसी को भी मिल पाती है,  या बस बातें हैं ?

मैं मिट जाना चाहता हूँ, 

मेरे मिटने से ही मेरी खुशी सम्भव है, 

पर कैसे मिटूं?

ऐसा लगता है जैसे मेरे झरने के मुहाने पर किसी ने एक बड़ा पत्थर रख दिया है, 

लोग साथ दिखते हैं पर हैं नही, 

स्वप्न की तरह सब झूठ है, 

क्या आजादी, मुक्ति,  एक कहानी भर है ?

क्या ये सबसे बड़ा झूठ तो नही?

तो फिर मैं  कौन हूं ? क्या बस उस झूठ का एक झूठा प्रतिबिंब ?