क्या है मेरे अन्दर जो डरता है, बेचैनी महसूस करता है.
इंसानी संगत खोजता है, अकेलेपन में पूरे गहरे उतर जाने से डरता है.
फिर बुरी संगती मिलने पर पछताता है.
गर्मी की रात की ठंडी हवा के एक झोंके के साथ वो बेचैनी हमेशा के लिए गायब क्यों नहीं हो जाती ?
क्यों बार बार आती है ?
आज इस पल में यहाँ पूरी तरह उपस्थित रहना चाहता हूँ.
प्रकाश और अंधकार के बीच का भेद समझना चाहता हूँ.
खोकर उस यात्रा से फिर वापस आ जाना चाहता हूँ,
इस झूठी सपनों की दुनिया में, फिर से एक बार.
शायद इस बार पूरी तरह जग जाऊँ,
खो जाना आसान है, जागना मुश्किल.
No comments:
Post a Comment