Tuesday, March 7, 2023

नया सफर या फिर एक दोहराव



 नए सफर में कितना कुछ पीछे छोड सकता है इंसान,  

शायद यहि है असली सफलता का पैमाना, 

कुछ छोड पाते हैं कुछ वो सफर कभी शूरू ही नहि कर पाते, 

सबसे अभागे वो लोग हैं शायद,  जो उस सफर के बारे कभी सोचते भी नहि,  उस तलाब के रूके हुए गंदे ठहरे पानी की तरह,

तुम सच मे निकले या अभी भी पीछे ही हो कहीं,  बस एक भ्रम सा है शायद कि निकले,

क्या कभी कुछ पीछे छोड़ा, क्या कभी कुछ पीछे छोडना भी चाहा, नहि चाहा तो क्यों नहि चाहा,  क्यों चिपके पडे हो, क्यों नये से दूर हो, क्या है ये साजिश, 

क्या हम कहीं पहुंच सकते हैं?

क्या कुछ कभी नया भी होता है?

क्या बदलता है हमे? हमारे निर्णय? या कुछ और,  वो कुछ और क्या है?

हम ज्यादा जिंदा हैं या ज्यादा मरे हुए? 

आज इस सफर में थोड़ा ज्यादा जिंदा हो गया, सब कुछ नया करने की आस, फिर से जिंदा हो जाने की उम्मीद, और एक नयी शुरूवात की आशा. 

जाने क्या होगा, क्या सबकुछ मेरे बस मे है?

कौन है मेरे अन्दर जो मुझे रोकता है, सीमित करता है ?

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