Wednesday, May 25, 2022

फितरत


 पेड़ों पर ठहरे हुए बादल, बूँदों का शोर, और कुछ अनछुए सवाल,

सवालों पर उलझते, फिसलते कहीं दूर चला जाता हूँ, 

और फिर वापस आने पर पता चला कि सारी उलझ बेकार थी, 

क्योंकि कहीं पहुचना ही न था,  बस थोड़ा भागना था,

भागना क्यों था, क्योंकि फितरत ही ऐसी हो गई है, 

अब तो रुक जाना था,  क्य़ा वो नहीं मिल गया जो सब तलाश का ही अंत कर दे,

नहीं मिला तभी तो भाग रहा हूं, 

पर कब तक कभी तो रुकना होगा .

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