तारे गिनता हूँ,
चांद को देखता हूं,
नदी में नहाता हूँ,
पेड़ों को गौर से देखता हूँ,
जंगल में जोर की साँस लेता हूँ,
कमल से भरे तालाब में शिसम के सूखे पत्ते को गिरते देखता हूँ,
एक छोटी बैंगनी रंग और काली चोंच वाली चिडिया को सहजन के फ़ूलों का रस पीते देखा,
उसी कमल के तालाब पे पांचवे दिन एक छोटी काली मछली को छलांग लगाते देखा,
दिल खुश हो गया,
खुद से और ज्यादा प्यार हो गया ,
पता लगा कि इंसानो के विपरित प्रकृति ढोंग और भेद भाव नही करती .
This is lovely. Keep writing
ReplyDeleteThanks for reading, keep reading🙏
Deleteबहुत सुंदर लिखा है।
ReplyDeleteधन्यवाद आपका
DeleteNice
ReplyDeleteThanks keep reading
DeleteI am extraordinarily affected beside your writing talents, Thanks for this nice share.
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