चेहरे के पीछे की उदासी और उसके पीछे कभी ना पूरी हो पाने वाली इच्छाओं का कौतुहल,
जो मांगा उसके पा जाने पर भी अशांति और पीड़ा,
मांगा क्यों?
क्यों मांगा जो मांगा ?
क्या सत्य की तरफ है ये कदम ?
क्या ये अंतिम पीड़ा का है सफर?
बाहर से बिखरा अंदर से एक,
पर उस एक से कोसो दूर, और कभी बहुत पास,
वासनाओं का जंगल और अशांति की मोटी दीवारें,
एक अजनबी सा हर घर में, और खोजता हुआ सा कुछ,
आक्रोश, गुस्सा, डर, बेचैनी, अंदर मे घने कोहरे से, धुधं, घुटन, और तडप.
दुनिया की वो बदसलूकी से जंग खाती जीने की लिप्सा,
प्यार का एक स्पर्श भी दूर,
प्यार की एक मुस्कराहट की तलाश,
और जाने क्या क्या...?
और
एक अदद घर की तलाश ,
जहाँ रुक जाऊँ, विश्राम पाऊँ, सो जाऊँ, हमेशा हमेशा के लिए.
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