प्रैक्टिकल लोग कभी असफल नहीं होते,
क्योंकि वो गलती से भी रास्ते नहीं भूलते इसलिए वो कभी नए रास्ते नहीं खोज पाते.
वो कभी गलती से किसी गलत ट्रेन में नहीं बैठते इसलिए किसी अनजान जगह बिना वजह जाने का मज़ा भी नहीं ले पाते.
वे अनियोजित यात्राओं पर कभी नही जाते, क्योंकि उनके जीवन में सबकुछ तय होना चाहिए, कुछ भी नए होने की उम्मीद को वो पहले ही मार चुके होते हैं.
वो बहुत आत्मविश्वास से भरे दिखते हैं क्योंकि उन्होंने पहला कदम ही अंत की साफ तस्वीर देखने के बाद ली थी.
जिन रास्तो पर कोई चला न हो और जिनपे चलने से पहले ही साफ़ अंत उन्हें नहीं दिखता वो उनपे चलने वालों को पागल समझ हतोत्साहित करते हैं.
वो भीड़ के साथ रहते हैं क्योंकि वो अंदर से बहुत डरे होते हैं,
उनका सबसे बड़ा डर असफल होने का है, इसलिए वो भीड़ से अलग कुछ भी करने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाते,
उनका सबसे बड़ा डर असफल होने का है, इसलिए वो भीड़ से अलग कुछ भी करने की कभी हिम्मत नहीं जुटा पाते,
उनकी जिंदगी की कहानी निश्चित होती है उसमें फ़ेर बदल की कोई संभावना नहीं .
और इनको लगता है यही जिंदगी है जहां सब पूर्व-निर्धारित होना चाहिए,
यही होता है प्रैक्टिकल होना जो सब कर रहे बिना सवाल पूछे बस वही करते रहो,
नहीं किए तो असफल हो जाओगे.
बात तो सही है लेकिन एक बात है मुझे आज तक यह समझ नहीं आया की कामयाबी के क्या मयार हैं और ना कामयाबी की क्या निशानियां हैं।
ReplyDeleteये एक गहरा सवाल है, इसका कोई निर्धारित जवाब नही हो सकता.
Deleteएक निशानी गहरी आत्मा की सन्तुष्टि है.